“गर इश्क समझते हो तो रख लो मुझे दिल में
सौदा हूं अगर मै तो मुझे सर से निकालो
ये शख्स हमें चैन से रहने नहीं देगा
तनहाइयां कहती हैं इसे घर से निकालो”
भारत भूषण पंत की शाइरी लखनऊ की उस रिवायत को मज़ीद रोशन करती है जिसे उनसे पहले बृज नारायन चकबस्त, दयाशंकर नसीम, रतनलाल सरशार, छन्नूलाल दिलगीर आनंद नारायऩ मुल्ला और कृष्ण बिहारी नूर जैसे नामवर शाइरों ने तजल्ली दी है. बुज़ुर्गों की दुआएं किस दरजा पुरअसर होती हैं पंत साहब के अश्आर में झलकता है. लेकिन उससे पहले उर्दू अदब से थोड़ी बहुत भी आश्नाई रखने वालों को उनका ये तआरूफ भी अपने आप में मुकम्मल है कि वह मरहूम वाली आसी साहब के शागिर्द हैं.
भारत भूषण पंत की शाइरी अहसास की शाइरी है. वह मुशायरे नहीं लूटती लेकिन किसी शिकस्तादिल शख्स की ग़मगुसारी और चारासाज़ी बखूबी करती है. ये वो सिफत है जो हर किसी के हिस्से में नहीं आती है. क्योंकि इसका अहतराम करने के लिए खुलूस और हिस्सियत के जिन नाज़ुक दिल जज्बात की ज़रूरत होती है वो अक्सर मुशायरों की तालियों से खौफ खाते हैं. पंत साहब को अदबी खेमों का हिस्सा बनना भी नहीं आता. लेकिन गेसू-ए-गज़ल को संवारना उन्हे खूब आता है. ग़ज़ल के उनके दो मजमुए तनहाइयां कहती हैं और बेचेहरगी मंज़र-ए-आम पर आ चुके हैं. इनमें ज़िंदगी के बेशुमार रंगों को खूबसूरती से शाइरी के पैकर में ढाला गया है. इनमें छिपा हर एक शेर पंत की सदाकत की गवाही देता है.
भारत भूषण पंत कैसे शाइर हैं इसे समझने के लिए उनकी वो ग़ज़लें भी सुननी चाहिए जो उन्होने अज़ीम शाइरों की ज़मीन में कही हैं. जिगर मुरादाबादी, शकेब जलाली, सलीम अहमद की मकबूल ज़मीनों में पंत साहब ने बेहतरीन ग़ज़लें कहीं हैं लेकिन उन्होने असल करिश्मा ग़ालिब की ज़मीन में किया है.
“दो दिनों की ज़िन्दगानी कुफ्र क्या इस्लाम क्या
एक दिन काबे में सजदा, बुत-परस्ती एक दिन”
लखनऊ में रहते हुए ही भारत भूषण पंत ने फिल्मी दुनिया को भी अपनी कलम से नवाज़ा है. पूजा भट्ट की फिल्म धोखा फिल्म के लिए उन्होने अपने उस्ताद भाई खुशबीर सिंह शाद के साथ मिलकर गीत लिखे हैं तो मशहूर गायिका कविता सेठ के प्राइवेट अल्बम के लिए भी गीत लिखे हैं. आने वाले दिनों में हमें उनके गीतों से सजी कुछ और फिल्में देखने को मिल सकती हैं.
लखनऊ सोसाइटी के संस्थापक की आज पंत साहब से उनके घर पर यादगार मुलाकात हुई. उनसे जो दुआएं मिलीं वे हमारे लिए चिराग-ए-राह की तरह हैं.