लखनऊ में अपने शहर को प्रेम करने वाले और उसकी सेवा करने वाले लोगों का जब भी ज़िक्र होता है शैलनाथ चतुर्वेदी जी का नाम सरे-फेहरिस्त होता है. पचास साल से ज्यादा समय से लखनऊ की खिद्मत में लगे शैलनाथ जी का नाम लखनऊ के साहित्यिक और सामाजिक जगत में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. हाल ही में जब एक बिल्डर ने ऐतिहासिक खुर्शेद बाग़ गेट को गिराने का प्रयास किया तब भी शैलेंद्र नाथ चतुर्वेदी ने इसका पुरज़ोर विरोध करते हुए स्थानीय नागिकों को लामबंद किया और बिल्डर के मंसूबों पर पानी फेर दिया. हिन्दी के आधुनिक काल के सबसे बड़े साहित्यिक व्यक्तित्वों में से एक पद्मभूषण पंडित श्रीनारायण चतुर्वेदी के सुपुत्र शैलनाथ जी को बचपन से ही हजारी प्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, भगवती चरण वर्मा, जैसी साहित्यिक हस्तियों का सानिध्य मिला. उनके पिता जब तक जीवित रहे लखनऊ में साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र रहे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी उनको गुरूवत सम्मान देते थे. पिता के जीवनकाल में ही उनकी विरासत को शैलनाथ जी ने संभाल लिया.
लखनऊ को चतुर्वेदी के अनेक साहित्यिक योगदान हैं जिनमें से मशहूर अमीनाबाद इलाके पर उनकी गहन शोध के बाद लिखी गई पुस्तक और आधुनिक अमीनाबाद के संस्थापक बाबू गंगा प्रसाद वर्मा पर केंद्रित उनकी पुस्तक अविस्मरणीय है. विडम्बना ही है कि इस पुस्तक के वजूद में आने से पहले तक लखनऊ शहर खुद को नवाज़ने वाले बाबू गंगा प्रसाद वर्मा के बारे में लिखित रूप में ज्यादा नहीं जानता था जबकि वर्मा जी की गिनती भारत के सबसे बड़े नेताओं में की जाती थी. 1885 में कांग्रेस के पहले अधिवेशन में लखनऊ से शिरकत करने वाले वर्मा अकेले आदमी थे. उत्तर प्रदेश में आज़ादी के आंदोलन में कांग्रेस को खड़ा करने का श्रेय वर्मा को ही है. उनके बारे में ये तमाम जानकारियां अंधेरे में ही रहतीं अगर शैलनाथ चतुर्वेदी ने अपने अथक परिश्रम से उनके बारे में सामग्री न जुटाई होती. इसके अलावा पिछले चार-पांच वर्षों से शैलनाथ चतुर्वेदी मिशनरी भाव से एक और ऐसा काम कर रहे हैं जिसके लिए लखनऊ की आने वाली पीढ़ियां उनकी ऋणी रहेगीं और उन्हे याद रखेगीं. उनके पिता की अंतिम इच्छा थी कि लखनऊ का आम से आम आदमी अपने शहर को जाने और इसपर गौरवान्वित हो, इसके लिए उसके पास उसकी भाषा में आसान साहित्य की कमी है. पिता के देहान्त के बाद शैलनाथ चतुर्वेदी ने पिता की दी हुई कुछ पूंजी से एक ट्रस्ट की स्थापना करके लखनऊ के अलग अलग पहलुओं पर केंद्रित पुस्तकों का प्रकाशन शुरू किया. अलग अलग विशेषज्ञों को लिखी अब तक तीस से ज्यादा किताबें छप चुकी हैं और ये सिलसिला जारी है. इन पुस्तकों में आम आदमी के लिए लखनऊ के बारे में भरपूर और माकूल जानकारी है. पुस्तकों का अधिकतम मूल्य सिर्फ पन्द्रह रूपए है ताकि ये हर आदमी की पहुंच में हों.
लखनऊ सोसाइटी के संस्थापक ने पिछले दिनों चतुर्वेदी जी के खुर्शेदबाग स्थित उनके घर पर जाकर उनसे प्रोत्साहन प्राप्त किया. चतुर्वेदी जी के मुताबिक लखनऊ की सास्कृतिक संरक्षा एक साझा मिशन है, जिसमें बच्चों बूढ़ों और जवान तीनों को अपना साझा योगदान देना पड़ेगी तभी बात बनेगी.