मेरा धन है स्वाधीन क़लम – मुद्राराक्षस

“लिखता हूँ अपनी मर्ज़ी से
बचता हूँ कैंची-दर्ज़ी से
आदत न रही कुछ लिखने की
निंदा-वंदन खुदगर्ज़ी से
कोई छेड़े तो तन जाती
बन जाती है संगीन क़लम
मेरा धन है स्वाधीन क़लम”

साहित्य, संस्कृति, समाज और …

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