जिन लखनवियों के इल्मी कारनामों पर लखनऊ नाज़ करता है उनमें एक बा-वकार नाम डा. शारिब रूदौलवी साहब का है| पचास साल से ज्यादा का कामयाब अदबी सफर ने आज शारिब साहब को उस रोशन मरहले पर पहुंचा दिया है जहां उनका एहतराम लखनऊ समेत पूरी दुनिया में बतौरे-उस्ताद होता है| उनके बाद आने वाली नस्लें उनसे रश्क करती रहीं हैं कि उन्होने जोश मलीहाबादी और फिराक गोरखपुरी जैसे लेजेंन्ड्स को न सिर्फ देखा है बल्कि उनसे मंसूब शायराना सुहबतों का हिस्सा भी रहे हैं| इसी सिलसिले में मजाज़, साहिर, फैज़, जानिसार अख्तर, मजरूह सुल्तानपुरी, मख्दूम मोहिउद्दीन, मुइन अहसन जज्बी जैसे मकबूल तरक्कीपसंद शाइर भी एक दौर में उनके हमनवा रहे हैं| क्योंकि शारिब रूदौलवी के अदबी सफर की इब्तेदा ही प्रगतिशील लेखक संघ के स्टूडेंट फेडरेशन के सेक्रेटरी होने के साथ होती है| यहां गौरतलब है कि दिसंबर 1955 में लखनऊ के जिस मुशायरे में मशहूर शायर मजाज लखनवी ने आखिरी बार अपना कलाम सुनाया और उसी रात उनका इंतकाल हो गया, वह मुशायरा भी उर्दू स्टूडेंट फेडरेशन की तरफ से आयोजित किया गया था| ये फेडरेशन के तीन दिवसीय लखनऊ कन्वेँशन के आखिरी दिन हुआ था| इस कन्वेंशन और मुशायरे के संयोजक और सेक्रेटरी शारिब रूदौलवी साहब थे| मजाज़ के उस आखिरी मुशायरे की तमाम यादें आज भी शारिब साहब के ज़हन पर नक्श हैं|

शारिब साहब की गिनती आज देश के सबसे बड़े उर्दू आलोचकों में होती है| 1957 में लखनऊ विश्वविद्यालय से उर्दू में एमए करने के बाद उन्होने 1965 में लखनऊ विश्वविद्यालय से ही ‘उर्दू साहित्य में आलोचना के सिद्धांत’ जैसे जटिल विषय पर पीएचडी की| शुरूआत से ही उनकी आलोचनात्मक दृष्टि का उर्दू दुनिया में बड़ा सम्मान किया जाता रहा| शारिब रूदौलवी दयाल सिंह कालेज दिल्ली, दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के भारतीय भाषा विभाग में सम्मानित पदों पर रहे| दो साल वे केंद्र सरकार में शिक्षा मंत्रालय में प्रिंसिपल पब्लिकेशन आफीसर भी रहे| उर्दू आलोचना पर उनकी चौदह किताबें आ चुकी हैं और उर्दू साहित्य में जब भी आलोचना की विधा की बात होती है शारिब साहब का नाम सरे-फेहरिस्त रहता है| इसके अलावा हाल ही में उनकी एक किताब मजाज लखनवी पर साहित्य अकादमी ने भी छापी है|

लखनऊ सोसाइटी खुशनसीब है कि अपने काम में उसे शुरू से ही शारिब रूदौलवी साहब का मार्गदर्शन मिलता रहा है| कुछ रोज़ पहले लखनऊ सोसाइटी के संस्थापक ने शारिब साहब से मुलाकात की और शुरू किए गए नए सेक्शन्स के बारे में उन्हे जानकारी दी| शारिब साहब इन प्रयासों से बेहद खुश नज़र आए| सोसाइटी के मिशन के बारे में शारिब रूदौलवी साहब का ये कौल ही हमारा ध्येय वाक्य है- ‘हर ज़माना जवान लोगों से ही चलता है, हमें जो कुछ करना था हम अपनी जवानी में कर चुके अब आपकी बारी है|’

“ज़माने से आगे तो बढ़िए ‘मजाज़’
ज़माने को आगे बढ़ाना भी है”