सन 2000 की बात है इसी साल के.पी. सक्सेना साहब को भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया था. एक रोज़ सुबह आठ बजे के.पी. साहब के घर का फोन बजा. उन्होने फोन उठाया तो दूसरी तरफ से आवाज़ आई- के.पी. सक्सेना साहब से बात हो सकती है, मै मुंबई से आमिर खान बात कर रहा हूं. के.पी. सक्सेना ने कहा- अमां सुबह सुबह आपको हमी मिलें तफरीह के लिए, और फोन काट दिया. इस एक जुमले में के.पी. साहब के व्यंग्य की धार महसूस की जा सकती है. बाद में आमिर खान ने परेश रावल से फोन करवाया जोकि के.पी. साहब के पुराने दोस्त हैं और ये ख्वाहिश जताई कि वे उनसे लगान के संवाद लिखवाना चाहते हैं. के.पी. मान गए लेकिन एक शर्त पर कि पूरी फिल्म वे लखनऊ में अपने घर पर बैठकर ही लिखेंगें, मुंबई के नहीं. ये है लखनऊ से केपी सक्सेना का रिश्ता. न सिर्फ लगान बल्कि जोधा-अकबर, स्वदेस और हलचल के संवाद भी के.पी. साहब ने लखनऊ में रहकर ही लिखे और उनकी लिखी इन चारो फिल्मों के डायलॉग लोगों के सर चढ़कर बोले.

सन 1931 में लखनऊ में जन्मे के.पी. सक्सेना की गिनती वर्तमान समय के सबसे बड़े व्यंग्यकारों में होती है. हरिशंकर परसाई और शरद जोशी के बाद वे हिन्दी में सबसे ज्यादा पहचाने गए व्यंग्यकार है, जिन्होने लखनऊ के मध्यवर्गीय जीवन के इर्द-गिर्द अपनी रचनाएं बुनीं. के.पी. साहब के रचना कर्म की शुरूआत उर्दू में अफसानानिगारी के साथ हुई थी लेकिन बाद में अपने गुरू अमृत लाल नागर के कहने और आशीर्वाद पाने पर वे व्यंग्य के क्षेत्र में आ गए. नागर साहब की शैली और आशीर्वाद दोनों ने के.पी. साहब के वयंग्य में खूब असर पैदा किया. उनकी लोकप्रियता इस कदर बढ़ी कि आज उनके तकरीबन पन्द्रह हजार प्रकाशित व्यंग्य हैं जो कि अपने आप में एक दुर्लभ कीर्तिमान है. उनकी पांच से ज्यादा फुटकर वयंग्य की पुस्तकें प्रकाशित हैं जबकि कुछ व्यंग्य उपन्यास भी छप चुके हैं.

के.पी. साहब की शैली हरिशंकर परसाई और मुजतबा हुसैन की तरह के तीखे व्यंग्य की नहीं है. वे शरद जोशी की तरह व्यंग्य को हास्य में लपेटकर पेश करने में ज्यादा सहज हैं. उनकी लखनवी शैली की उनकी मौलिकता और देशजता उन्हे अनूठा बना देती है. ये भी एक आश्चर्य ही है कि देश में के.पी. सक्सेना ही अकेले ऐसे गद्यलेखक रहे हैं जिनको कवि सम्मेलनों में जनता ने कवियों के बीच भी सुना है और सराहा है.

एक लम्बे कालखण्ड तक के.पी. साहब की ख्याति देशभर में व्यंग्यकार के बतौर रही है लेकिन पिछले एक दशक में उन्हे जो ख्याति आशुतोष गोवारिकर की फिल्मों के लिए उनके लिखे संवादों ने दिलाई उसका कोई जोड़ नहीं. खुद के.पी. भी ये मानते हैं. फिलहाल वे आशुतोष गोवारिकर की ही नई फिल्म के संवाद लिख रहे हैं जिसकी विषयवस्तु प्रागैतिहासिक काल के जनजीवन पर आधारित है.

लखनऊ सोसाइटी के संस्थापक ने कुछ रोज़ पहले के.पी. साहब से उनके घर पर मुलाकात की. इस दौरान के.पी. लखनऊ सोसाइटी के प्रयासों से बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि ये कोशिश ज्यादा से ज्यादा लोगों के बीच पहुंचनी चाहिए.